Roza Kholne Ki Dua: रमज़ान में रोज़ा रखने और खोलने की दुआएं
रमज़ान इस्लाम का सबसे पाक महीना माना जाता है। इस दौरान मुसलमान अल्लाह की इबादत में ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताते हैं और रोज़ा रखते हैं। रोज़ा रखना सिर्फ भूखे-प्यासे रहना ही नहीं, बल्कि यह सब्र, धैर्य और अल्लाह की रहमत पाने का ज़रिया भी है। रोज़ा रखने और इफ्तार करने से पहले कुछ खास दुआएं पढ़ी जाती हैं, जो इस्लामिक रिवायतों के मुताबिक़ बहुत अहम मानी जाती हैं।
इस लेख में हम रोज़ा रखने और खोलने की दुआ के साथ-साथ इफ्तार की दुआ, नफिल रोज़ा की दुआ, अयतुल कुर्सी और अन्य जरूरी जानकारियां आसान भाषा में आपको बताएंगे।

Table of Contents
- 1 1. रोज़ा रखने की दुआ (सेहरी की दुआ) – Roza Rakhne Ki Dua (Sehri)
- 2 2. रोज़ा खोलने की दुआ (इफ्तार की दुआ) – Roza Kholne Ki Dua (Iftar Ki Dua)
- 3 3. नफिल रोज़ा खोलने की दुआ – Nafil Roza Kholne Ki Dua
- 4 4. इफ्तार की दुआ – Iftar Ki Dua
- 5 5. आयतुल कुर्सी – Ayatul Kursi
- 6 6. रोज़ा खोलने की नीयत – Roza Kholne Ki Niyat
- 7 7. मगरिब की रकात – Maghrib Rakat
- 8 निष्कर्ष
1. रोज़ा रखने की दुआ (सेहरी की दुआ) – Roza Rakhne Ki Dua (Sehri)
रोज़ा रखने से पहले सेहरी की जाती है, और इस समय एक खास दुआ पढ़ी जाती है।
हिंदी में:
“मैं नीयत करता हूँ कि मैं कल के रोज़े की नीयत से रोज़ा रख रहा हूँ, अल्लाह तू इसे मेरे लिए आसान बना और इसे कुबूल फरमा।”
उर्दू में:
وَبِصَوْمِ غَدٍ نَوَيْتُ مِنْ شَهْرِ رَمَضَانَ
अंग्रेज़ी में:
“I intend to keep the fast for tomorrow in the month of Ramadan.”
रोज़ा की नीयत करने से रोज़ेदार का इरादा पक्का हो जाता है और अल्लाह की मदद से वह पूरे दिन संयम के साथ उपवास रखता है।
2. रोज़ा खोलने की दुआ (इफ्तार की दुआ) – Roza Kholne Ki Dua (Iftar Ki Dua)
जब सूरज डूब जाता है और इफ्तार का समय होता है, तो रोज़ा खोलने से पहले यह दुआ पढ़ी जाती है।
हिंदी में:
“हे अल्लाह! मैंने तेरे लिए रोज़ा रखा, तुझ पर ईमान लाया, तुझ पर भरोसा किया और तेरी दी हुई रोज़ी से रोज़ा खोला।”
उर्दू में:
اللَّهُمَّ إِنِّي لَكَ صُمْتُ وَبِكَ آمَنْتُ وَعَلَيْكَ تَوَكَّلْتُ وَعَلَى رِزْقِكَ أَفْطَرْتُ
अंग्रेज़ी में:
“O Allah! I fasted for You, I believe in You, I put my trust in You, and with Your sustenance, I break my fast.”
अरबी में:
اللَّهُمَّ إِنِّي لَكَ صُمْتُ وَبِكَ آمَنْتُ وَعَلَيْكَ تَوَكَّلْتُ وَعَلَى رِزْقِكَ أَفْطَرْتُ
यह दुआ पढ़कर रोज़ेदार इफ्तार करता है और अल्लाह का शुक्र अदा करता है कि उसने पूरा दिन संयम के साथ रोज़ा रखा।
3. नफिल रोज़ा खोलने की दुआ – Nafil Roza Kholne Ki Dua
नफिल रोज़ा यानी कि स्वेच्छा से रखा गया उपवास भी बहुत बरकतदायी होता है। इसे खोलते समय भी वही दुआ पढ़ी जाती है जो इफ्तार के समय पढ़ी जाती है।
नफिल रोज़ा खोलते समय पढ़ी जाने वाली दुआ:
اللَّهُمَّ إِنِّي لَكَ صُمْتُ وَبِكَ آمَنْتُ وَعَلَيْكَ تَوَكَّلْتُ وَعَلَى رِزْقِكَ أَفْطَرْتُ
नफिल रोज़े आमतौर पर सोमवार और गुरुवार को रखे जाते हैं, क्योंकि पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) भी इन दिनों में रोज़ा रखा करते थे।
4. इफ्तार की दुआ – Iftar Ki Dua
इफ्तार करते समय यह दुआ पढ़ने से रोज़ेदार को अल्लाह की रहमत मिलती है और उसका रोज़ा कुबूल होता है।
हिंदी में:
“हे अल्लाह! तेरी रहमत से ही मेरा प्यास बुझी, मेरी नसें तर हो गईं और रोज़े का सवाब भी मिल गया, अगर तू चाहे।”
उर्दू में:
ذَهَبَ الظَّمَأُ وَابْتَلَّتِ الْعُرُوقُ وَثَبَتَ الأَجْرُ إِنْ شَاءَ اللَّهُ
अंग्रेज़ी में:
“The thirst is gone, the veins are moistened, and the reward is confirmed, if Allah wills.”
इफ्तार के समय की गई दुआ को अल्लाह जल्दी कुबूल करता है, इसलिए इस मौके पर दुआ मांगनी चाहिए।
5. आयतुल कुर्सी – Ayatul Kursi
आयतुल कुर्सी इस्लाम की सबसे शक्तिशाली आयतों में से एक है। इसे पढ़ने से सुरक्षा और बरकत मिलती है।
अरबी में:
اللَّهُ لَا إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ الْحَيُّ الْقَيُّومُ ۚ لَا تَأْخُذُهُ سِنَةٌ وَلَا نَوْمٌ ۚ لَهُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ ۗ مَنْ ذَا الَّذِي يَشْفَعُ عِندَهُ إِلَّا بِإِذْنِهِ ۚ يَعْلَمُ مَا بَيْنَ أَيْدِيهِمْ وَمَا خَلْفَهُمْ ۖ وَلَا يُحِيطُونَ بِشَيْءٍ مِّنْ عِلْمِهِ إِلَّا بِمَا شَاءَ ۚ وَسِعَ كُرْسِيُّهُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ ۖ وَلَا يَئُودُهُ حِفْظُهُمَا ۚ وَهُوَ الْعَلِيُّ الْعَظِيمُ
हिंदी में:
“अल्लाह, उसके सिवा कोई माबूद नहीं, वह जिन्दा और सबको संभालने वाला है। उसे न तो ऊंघ आती है और न नींद। आसमानों और ज़मीन की हर चीज़ उसी की है।”
आयतुल कुर्सी पढ़ने से अल्लाह की हिफाज़त मिलती है और घर में बरकत आती है।
6. रोज़ा खोलने की नीयत – Roza Kholne Ki Niyat
रोज़ा खोलते समय दिल में यह नीयत करनी चाहिए कि यह रोज़ा सिर्फ अल्लाह की खुशी के लिए रखा गया था और अब अल्लाह के हुक्म से इसे खोला जा रहा है।
नीयत:
“मैं अपने रोज़े को अल्लाह के हुक्म से खोल रहा हूँ और उसी पर भरोसा करता हूँ।”
7. मगरिब की रकात – Maghrib Rakat
मगरिब की नमाज़ इफ्तार के तुरंत बाद पढ़ी जाती है। इसमें कुल 3 फर्ज़, 2 सुन्नत और 2 नफिल रकात होते हैं।
मगरिब की नमाज़ की रकातें:
- 3 फर्ज़
- 2 सुन्नत
- 2 नफिल
इफ्तार के बाद नमाज़ जरूर पढ़नी चाहिए ताकि रोज़े की इबादत मुकम्मल हो सके।
निष्कर्ष
रोज़ा रखना और खोलना इस्लाम की सबसे पवित्र इबादतों में से एक है। सही नीयत और दुआओं के साथ रोज़ा रखने और खोलने से इसका सवाब बढ़ जाता है। रोज़ेदार को सेहरी और इफ्तार में हल्का और सेहतमंद खाना लेना चाहिए और इफ्तार के समय ज्यादा से ज्यादा दुआ करनी चाहिए क्योंकि यह समय बरकतों से भरा होता है।