बहुत समय पहले की बात है किसी जंगल में एक शेर रहता था। जब वह शेर जवान था, तब वह खूब जानवरों का शिकार किया करता था। अब वह बूढ़ा हो चला था। उसमें शिकार करने की शक्ति नहीं रह गई थी। इस कारण बहुत दिनों तक उसे भूखा रहना पड़ता था।
एक दिन बूढ़ा शेर जंगल में घूम रहा था, तभी उसे जमीन पर पड़ा एक सोने का कंगन
दिखाई दिया। कंगन उठाकर वह सोचने लगा कि वह इस कंगन का क्या करेगा? तभी उसके दिमाग में एक उपाय आया।
उसने अपनी योजना को अंजाम देने के लिए हाथ में मोतियों की एक माला ली और एक हाथ में कमंडल लेकर एक पेड़ के नीचे बैठ गया और अपने शिकार के आने की प्रतीक्षा करने लगा। थोड़ी देर बाद उसे निर्धन ब्राह्मण दूर से आता हुआ दिखाई दिया। बूढ़े शेर ने निश्चय कर लिया कि वह आज ब्राहमण को अपना शिकार बनाएगा। इसके लिए उसने पेड़ के नीचे बैठकर आँखें बंद कर जोर-जोर से भगवान का नाम लेना शुरू कर दिया।

ब्राह्मण जब थोड़ा समीप आया उसे शेर के जोर-जोर से राम-राम बोलने का स्वर सुनाई दिया। उसने सोचा लगता है कि बहुत बड़ा तपस्वी जंगल में तपस्या कर रहा है लेकिन पास जाकर जब उसने पेड़ के नीचे बैठे शेर को राम का नाम लेते हुए सुना तो वह बहुत डर गया। वह भय के मारे काँपने लगा।
शेर ने ब्राह्मण को काँपते देखकर कहा, “क्या हुआ ब्राह्मण देवता? तुम इतना डर क्यों रहे हो? घबराओ नहीं मेरे नजदीक आओ! मैं तुम्हें कुछ भी नुकसान नहीं पहुँचाऊँगा।’
शेर की बात सुनकर ब्राह्मण को उसकी बात पर विश्वास हो गया। वह अपनी जगह से हिला भी नहीं। तब शेर अपनी बोली में थोड़ी नम्रता लाते हुए बोला, डरो नहीं गरीब ब्राह्मण। मैंने अब तक बहुत पाप किए हैं। मैंने अपनी जवानी में बहुत से जानवरों को बड़ी निर्दयता से मारा है। मैं अत्याचारी था। अब मैं अपने पापों का प्रायश्चित करना चाहता हूँ। शेर के मुँह से ऐसी बात सुनकर ब्राह्मण में थोड़ी हिम्मत आई। उसने पूछा, ‘तुम कैसे प्रायश्चित करोगे?”
शेर ने कहा, “देखो मेरे पास यह सोने का कंगन है। इसे मैं किसी गरीब को देना चाहता हूँ ।” शेर के पास सोने का कंगन देखकर ब्राह्मण के मन में लोभ आ गया। उसने शेर से पूछा, “क्या मैं ये कंगन हाथ में लेकर देख सकता हूँ।”
शेर बोला, “हाँ-हाँ क्यों नहीं।” वह कंगन लेने के लिए शेर के पास गया जैसे ही वह शेर के निकट पहुँचा, तो शेर ने उसे धर दबोचा और उसे मारकर खा गया। इस प्रकार लालच के कारण बेचारा ब्राह्मण मारा गया।