हाथी और दर्जी की कहानी | Hathi aur Darji ki Kahani Hindi mein
एक नगर में एक हाथी रहता था। उसका मालिक हाथी का बहुत ख्याल रखता था। वह प्रतिदिन घुमाता तथा पास में बहती नदी में ले जाकर स्नान कराता था। हाथी भी से अच्छा था। नगर के सभी लोग उसे कुछ-न-कुछ खाने को देते थे और उसे
गजराज नाम से पुकारते थे। वह बहुत खुश रहता था।
नदी की तरफ जाने पर रास्ते में एक दर्जी की दुकान पड़ती थी। वह दर्जी गजराज को बहुत मानता था। उसके खाने के लिए वह केले लाकर रखता और जब गजराज अपने मालिक के साथ उधर से गुजरता तो उसे दर्जी केला खिलाता।
गजराज भी प्रसन्न होकर अपनी सूँड़ उसके सिर पर रखकर आशीर्वाद देता था। गजराज प्रतिदिन उसी रास्ते से नदी । में स्नान करने जाता था। रास्ते में सभी लोग उसे खिलाते और वह सबको आशीर्वाद देता था परंतु उस दर्जी की
दुकान के सामने गजराज विशेषकर रुकता था। जब दर्जी उसे केला खिला देता तो वह खुशी-खुशी स्नान के लिए चला जाता था। यह प्रक्रिया प्रतिदिन होती रहती थी।
एक बार किसी काम के सिलसिले में दर्जी को बड़े शहर जाना पड़ा तो उसने अपने बेटे को दुकान पर बिठा दिया। उस दिन दुकान पर दर्जी का बेटा बैठा हुआ था। गजराज प्रतिदिन की तरह स्नान करने नदी जा रहा था।
जब दर्जी की दुकान आई तो गजराज दुकान के सामने खड़ा हो गया। दर्जी के लड़के को पता नहीं था कि वह हाथी क्यों खड़ा है? तभी कुछ लोगों ने बताया कि तुम्हारे पिता उसे रोज केले खिलाते हैं।
यह सुनकर लड़के को शरारत सूझी कि आज कुछ ऐसा करूँ कि कल से यह हाथी यहाँ न आए और जब गजराज ने खाने के लिए अपनी सूँड़ आगे बढ़ाई तो लड़के ने गजराज के सूँड़ में सुई चुभो दी। इस पर गजराज ने अपनी सूँड़ तुरंत हटा ली और नदी के तरफ चल दिया।
गजराज नदी में स्नान करने के बाद जब वापस आ रहा था तो उसे रास्ते में गड्ढे में गंदा पानी दिखाई दिया। गजराज उसे सूँड़ में भर कर चल दिया।
जब वह दर्जी की दुकान के पास पहुँचा तो उस लड़के ने उसे चिढ़ाना शुरू कर दिया। क्यों गजराज केले नहीं खाओगे। यह सुनकर गजराज क्रोधित हो गया और सूँड़ में भरा में सारा गंदा पानी दुकान के अंदर कपड़ों पर डाल दिया और वापस अपने रास्ते पर चल दिया। अब लड़के को अपनी करनी पर पछतावा हो रहा था।