लालची हकीम की कहानी | Lanlchi hakim story in hindi
हरियाणा राज्य के एक जिले का नाम है, रोहतक। इसी जिले में सापला नामक एक छोटा-सा गाँव है। यह कहानी उसी गाँव की है। इस गाँव में एक हकीम रहता था। हकीम लालची था। वह भोले-भाले लोगों से खूब पैसे ऐंठता था। लोग उसके पास ही जाया करते थे, क्योंकि पूरे गाँव में वही अकेला हकीम था ।
इसी गाँव में विद्याधर नाम का एक चरवाहा रहता था । नाम तो था विद्याधर, लेकिन था मूर्ख । वह भेड़-बकरियाँ, गाएँ आदि चराया करता था। एक बार उसकी बकरी बीमार पड़ गई।
विद्याधर बकरी को लेकर हकीम जी के पास पहुँचा। हकीम जानवरों का डॉक्टर तो था नहीं, भला बकरी को दवा कैसे देता! उसने बकरी के इलाज के नाम पर पैसा ऐंठना चाहा।
हकीम ने विद्याधर से दो सौ रुपए माँगे और साथ में शर्त रख दी, “मैं इलाज के पैसे लूँगा, चाहे बकरी ठीक हो या मर जाए ।”
बेचारा विद्याधर क्या करता, उसने हकीम की शर्त मान ली। हकीम ने बकरी को दवा पिला दी और कल पैसे लेकर आने को कहा। विद्याधर घर लौट आया। संयोग से बकरी रात में ही चल बसी। बकरी के मरने का समाचार हकीम ने भी सुना। वह विद्याधर के घर पहुँचा और अपनी फ़ीस माँगने लगा। विद्याधर ने पैसे देने से मना कर दिया क्योंकि उसकी बकरी मर गई थी।
मामला पंचायत में पहुँचा। सरपंच हकीम को अच्छी तरह से पहचानते थे। उन्होंने हकीम से कहा कि वह फीस माफ़ कर दे लेकिन हकीम अकड़ गया। सरपंच चतुर थे, उन्होंने हकीम से अपनी शर्त दोहराने को कहा। हकीम ने शर्त दोहरा दी। सरपंच ने हकीम से पूछा, “क्या आपने अपने इलाज से बकरी को मार दिया?” हकीम ने उत्तर दिया, “नहीं।” सरपंच ने पूछा, 44 ने ‘क्या आपके इलाज से बकरी ठीक हुई?” हकीम ने कहा,
“नहीं।” सरपंच ने कहा, “आपके इलाज से बकरी ठीक नहीं हुई। आपके इलाज से बकरी मरी भी नहीं। इसका अर्थ हुआ कि आप फ़ीस ले ही नहीं सकते।” हकीम चुप रह गया।