सिद्धार्थ की दयालुता की कहानी sidharth ki dayaluta moral stories in hindi

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  • Post last modified:September 3, 2023

कपिलवस्तु नामक प्रांत में एक राजा रहता था । उसका नाम शुद्धोधन था । वह बड़ा प्रतापी और न्यायप्रिय था । उसका एक बेटा था, जिसका नाम सिद्धार्थ था। एक बार की बात है । सिद्धार्थ बगीचे में टहल रहा था। ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी। आसमान साफ था । वातावरण स्वच्छ था। अचानक एक घायल हंस उसके पास आकर गिरा। हंस बाण लगने से घायल हुआ था। उसके शरीर से खून बह रहा था । पीड़ा के कारण हंस छटपटा रहा था।

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घायल हंस को देखकर सिद्धार्थ से रहा न गया। उसके दिल में दया आई। उसने हंस को गोद में उठा लिया। उसके शरीर से बाण निकाला, घाव को धोया और अपनी धोती से कुछ कपड़ा निकालकर घाव पर पट्टी बाँध दी । सिद्धार्थ हंस को प्यार से सहलाने लगे। कुछ समय बाद हंस की छटपटाहट कुछ कम हुई।

इतने में सिद्धार्थ का चचेरा भाई देवदत्त वहाँ आ पहुँचा। उसने सिद्धार्थ से हंस माँगते हुए कहा, “यह हंस जिसे तुमने पकड़ रखा है, उसे मैंने मारा है। यह मेरा शिकार है। दूसरे की वस्तु पर अधिकार जताना आप जैसे राजकुमार को शोभा नहीं देता। अब इस हंस को मुझे दे दो। यह बाण जो सामने पड़ा है मेरे ही कमान से निकला है।”

सिद्धार्थ ने बड़े विनम्र भाव से कहा, “यह हंस मेरा है। मैंने इसकी जान बचाई है। मैं इसे किसी भी कीमत पर तुम जैसे शिकारी के हाथ नहीं दूंगा।” इस तरह दोनों में तू-तू मैं-मैं शुरू हो गई। झगड़ा बहुत बढ़ गया। अंत में दोनों राजा के पास पहुँचे।

देवदत्त ने कहा, “राजन्, यह हंस मेरा शिकार है। मैंने इसे बाण से घायल किया है, पर यह सिद्धार्थ मानता ही नहीं है। आप इससे कहें कि यह इस हंस को मुझे लौटा दे।

सिद्धार्थ बोला, “राजन्, यह हंस घायल होकर मेरे पास आकर गिरा था। मैंने इसे मरने से बचाया है, इसलिए यह हंस मेरा है।”

राजा ने दोनों की बात ध्यान से सुनी और अंत में फैसला सुनाया। मारने वाले से बचाने वाले का अधिकार अधिक होता है। अत: हंस सिद्धार्थ का ही है। यही सिद्धार्थ आगे चलकर महात्मा बुद्ध के नाम से संसार में प्रसिद्ध हुए।

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Vishnu

Vishnu Acharya is the Author & Founder of hindiAstar.com. He has also completed his graduation in Mechanical Engineering from RTU. He is passionate about Blogging & Technology.

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